परिचय :

काजू का मूल उत्पत्ति स्थान अमेरिका का उष्ण कटिवन्ध है। मगर कई वर्षों से यह भारत वर्ष के सामुद्रिक किनारों पर भी बहुतायत से पैदा होती है। इसका वृक्ष छोटे कद का होता है । इसकी शाखाएं मुलायम रहती हैं। इसके पत्ते १० से लगाकर १५ से०मी० तक लम्बे और ३८ से ७५ सेमी० तक चौड़े खिरनी या कटहल के पत्तों की तरह होते हैं। इसके एक प्रकार गोंद भी लगता है जो पीला या कुछ ललाई लिये हुए रहता है, इसके फल सरदी के दिनों में मेवे के रूप में सारे भारतवर्ष के बाजारों में बिकते हैं ।

सूखे मेवे के रूप में काजू का स्थान सर्वोपरि है। काजू दो प्रकार के होते हैं 1. सफेद, 2. श्याम । सूखे मेवे के रूप में काजू और द्राक्ष मिलाकर खाए जाते हैं। काजू के पके फलों का खाद्य पदार्थ के रूप में उपयोग होता है । इसके पके फल मल विकार नाशक हैं। काजू के सूखे बीजों को चीनी या शक्कर की चासनी में डालकर मिठाई बनाई जाती है। सर्दियों के मौसम में पाकों में बादाम, चिरौंजी और पिस्तों के साथ काजू के बीज भी डाले जाते हैं। काजू के सेवन की मात्रा वयस्कों के लिए 2-3 तोला और छोटे बच्चों के लिए आधा से एक तोला तक है तथा काजू के तेल की मात्रा 3 से 6 माशा तक है।

विभिन्न भाषाओं में नाम :

संस्कृत-अग्निकृत, अरुष्कर, गुरुपुष्य, कजूक, पृथकवीज, उपपुष्पिका ।  हिन्दी-काजू।  मराठीकाजू, कजुकाबि ।  गुजराती-काजू ।  बंगाल-काजू, हाजली वदाम कनाड़ी-गेरुवीज ।  तामील-आदेमा ।  तेलगू-जिडीमामिडी ।  लेटिन-Anacardium Occidentale

काजू के औषधीय गुण : kaju ke aushadhi gun

1-आयुर्वैदिक मत से यह फल कसैला, मीठा और गरम होता है।
2-
वात, कफ, अबुर्द, जलोदर, ज्वर, वृण, घबलरोग और अन्य चर्मरोगो को यह दूर करता है।
3-
यह कामोद्दीपक और कृमि नाशक होता हैं ।
4-
पेचिश, बवासीर और भूख की कमजोरी में यह लाभदायक है ।
5-
इसके छिलटे में धातु परिवर्तक गुण रहते हैं। इसकी जड़ विरेचक मानी जाती हैं।
6-
इसका फल रक्तातिसार को दूर करने वाला होता है।
7-
इसके छिलके से एक प्रकार का तेल प्राप्त किया जाता है जो दाहक होता है और शरीर पर लगाने से फोला पैदा कर देता है। इसे कोढ, दाद, वृण, और अन्य चर्म रोगों पर लगाने के काम में लेते हैं। इसके १०० तोले छिलकों में २६ तोला तेल निकलता है। इसका रंग काला और स्वाद कड़वा होता है ।
8-
यूरोप में इसके बीज कोष का तेल कृमिनाशक वस्तु के तौर पर काम में लिया जाता है।
9-
इसका मगज पौष्टिक, शान्तिदायक शौर स्निग्ध वलु है । यह कमजोर रोगियो को जो वमन के रोग से पीड़ित हो, खाद्य के रूप में दिया जाता है । इसके साथ में एसिड हाइड्रो सिएनिक्स’ (Acid Hydrocyanic dil ) भी दिया जाता है।
10-
काजू का तेल विष प्रति रोधक भी है। यह पेट और आंतों के ऊपर जमकर विषजनित प्रदाह से रक्षा ही नहीं करता है बकि उसकी तेजी को नष्ट कर देता है। यह कई प्रकार के लेप और बाह्य प्रयोगों के लिये उत्तम वस्तु है।
11-
अमेरिकन जरनल फारमोकोपिया ( १८८२ ) के अनुसार इसके छिलके के नीचे एक काला पदार्थ रहता है जिसे कारडोल (Cardol ) कहते हैं। बेसीनर के मतानुसार कारडल का इजेक्शन जानवरों को क्रियाहीन करने वाला और उनकी श्वास क्रिया को नष्ट करने वाला होता है। यदि यह कपड़े पर लगा कर सीने पर चिपका दिया जाय तो १४ घण्टे में छाला पैदा कर देता है।
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युनानी मत यनानी मत से यह मेवा गरम और तर होता है। यह शरीर को मोटा करता है, दिल को ताकत देता है; कामोद्दीपक है, वीर्य को बढ़ाता है, गुदे को ताकत देता है और दिमाग के लिये मुफीद है। अगर इसके बासी मुंह खाकर थोड़ी सी शइद चाटले तो दिमाग की कमजोरी मिट जाती है। सर्द और तर मिजाज वालों के लिए यह भिलामे के समान लाभ दायक है। 
13-
गोल्डकास्ट में इसका छिलका और इसकी पत्ती दांतों की पीड़ा और मसूडा के सूजन में काम में ली जाती है ।
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कर्नल चोपरा के मतानुसार इसका छिलटा धातु परिवर्तक और संकोचक है। इसका फल कोढ़, व्रण पर लगाया जाता है। यह प्रदाह को मिटाने वाला है। इसमें कारडोल (Cardol ) और (Anacardic Acid ) नाम के तत्व पाये जाते हैं।
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वैज्ञानिक मतानुसार काजू के बीज और उसके तेल में प्रोटीन और विटामिन बीअत्यधिक मात्रा में है। काजू का प्रोटीन शरीर में बहुत शीघ्र पच जाता है।

काजू के फायदे / रोगों का इलाज : kaju ke fayde / rogo ka ilaj

1-स्मरणशक्ति सर्दियों में बड़े सबेरे प्रतिदिन खाली पेट 2-3 तोला काजू खाकर ऊपर से शहद चाटने से मस्तिष्क की शक्ति एवं स्मरणशक्ति बढ़ती है।

2-वायु- काजू के पके फल काली मिर्च और नमक डालकर 3-4 दिन बड़े सबेरे खाने से मलविकार मिटता है अथवा काजू के पके फल खाने से पेट में बड़ी आँत में एकत्रित वायु मिटती है।

3-कब्जियत- काली द्राक्ष या हरी द्राक्ष के साथ 2-3 तोला काजू खाने से अजीर्ण या गर्मी के कारण होने वाली कब्जियत दूर होती है।

4-गाँठ- काजू के कच्चे फल का गर्भ और तिवर के फल को पानी में घिसकर लेप करने से बद (गाँठ) जल्दी पककर फूट जाती

5-बलवर्धक- काजू के बीज से पीले रंग का तेल निकलता है। यह तेल पौष्टिक और जैतून के तेल से ज्यादा गुणकारी व श्रेष्ठ है। शुद्ध घी के अभाव में काजू का तेल उत्तम लाभ प्रदान करता है।

6-शरीर के मस्से- शरीर पर जो छोटे २ काले मस्से हो जाते हैं उनको जलाने के लिये इसके छिलकों का तेल लगाया जाता है ।

7- नलविकार- प्रतिदिन सुबह के समय काजू के साथ कालीमिर्च व चीनी खाने से नलविकार दूर होता है।

8- पेट की गैस- काजू के पके फल को कालीमिर्च व नमक के साथ 3-4 दिनों तक सुबह के समय सेवन करने से पेट की गैस नष्ट होती

9- कब्ज- द्राक्षा या हरी द्राक्षा के साथ 30 ग्राम काजू खाने से कब्ज दूर होती है।

10- हाथ-पैर फटना- काजू का तेल हाथ-पैरों की त्वचा पर लगाने से त्वचा नहीं फटती है। इसके तेल का प्रयोग एड़ियां फटने पर भी किया जाता है। मस्सों पर इसका तेल लगाने से मस्से सूखकर नष्ट होते

11-सफेद दाग- रोजाना काजू खाने से श्वेत कुष्ठ (सफेद दाग) समाप्त हो जाता है।

12-त्वचा की शुन्यता- कोढ़ से पैदा हुई त्वचा की शल्यता भी इस तेल के लगाने से मिटती है बिवाई-इसके छिलकों का तेल लगाने से पैरों के अन्दर फटी हुई बिवाई मिट जाती है ।

13-पैर की कमजोरी- पैरों की कमजोरी को दूर करने के लिए काजू के दूध का लेप पैरों पर करें। इससे पैरों की कमजोरी दूर होती है।

14-फोड़ा होना-  काजू की कच्ची गिरी और तीवर के फल को ठंडे पानी में घिसकर लेप बनाकर फोड़े पर लगाने से फोड़ा पककर जल्दी ठीक होता है।